कुछ हल्का लिखें
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कुछ हलका लिखें
शब्द जिनका बोझ न कागज़ न कलम
न जिस्म न जज़बात उठाएं
शब्द जो हलके से मेरे बालों में
तुम्हारे हाथ जैसे गुजरें और
शब्द जिनका बोझ न कागज़ न कलम
न जिस्म न जज़बात उठाएं
शब्द जो हलके से मेरे बालों में
तुम्हारे हाथ जैसे गुजरें और
दिल में पड़ी दो कलों की गांठों को
कुछ ढीला कर दें
की बस ज़ोर लगे तो इतना
जितना फूले हुए फुलके को तवे पर
पूने से गोल गोल माँ घुमाती है
कलम तक की भी ज़हमत उठाने में न आये
बस वो स्याही भरी आँखें
पल भर एहतियात भूलें, एक ग़ज़ल हो जाये
काग़ज़ उड़ता रहे बेधड़क
और एक गीत फडफडाता रहे
तितली सा आ बेठे नाक पर, मैं हूँ नींद में,
जो आँखें खोलूं, एक सपना लगे