15
Aug
The Theatre of Kanhailal
6 years ago
दर्द कुछ देर ही रहता है बहुत देर नहीं--
जिस तरह शाख से टूटे हुए पत्ते का रंग
मांद पड़ जाता है कुछ रोज़ शाख से अलग रह कर
शाख से टूट के ये दर्द जियेगा कब तक?
ख़त्म हो जाएगी जब इसकी रसद
टिमटिमाएगा ज़रा देर को बुझते बुझते
और फिर लम्बी सी एक सांस धुएं की ले कर
ख़त्म हो जाएगा, ये दर्द भी बुझ जाएगा--
दर्द कुछ देर ही रहता है बहुत देर नहीं!