सपना

Posted by Hina




सहला फुसला के एक रात
सुलाया था एक सपना

सुनहरी पलकों से इन आँखों ने
झपकाय था एक सपना
अँधेरे में जुगनू सा
जगमगाया था एक सपना
बड़ी मुश्लिल से एक रात
सुलाया था एक सपना

सारा दिन पेड़ो पर चड़ा
धुप से सिके फल खता रहा
नदी के किनारे पैरों को
पानी में नेह्लाता रहा
टायर के गोले को डंडे से मारता मारता
गंदे कपड़े और
छिले घुटनो के साथ
घर लाया था सपना

मैंने धुतकार के जब
कान खींचा था
लिपट कर कमर पर
कस के बंध गया था
मेरे मन की कठोर सतेह भी
पिघल गयी थी
उस नन्ही गिरफ्त की गरमाहट में

उसका चल-कपट हमेशा ही मुझे
विवश कर देता
अपने संकल्प को भूल जाने पर
आज नहीं मानूंगी आज नहीं मानूंगी
पर हर बार उसकी प्यार से भरी आँखें
जैसे सम्मोहित कर लेती

वोह खिलखिलाती हंसी वोह शरारत वोह उम्मीद
आज बिस्तर पर बीमार पड़ी है
ना जगती है ना सोती है
ना परेशान करती है
जब नहीं होती में सहलाने के लिए
अचानक उठ कर रातों में कभी
रो भी पड़ती है

थी आंधी,थी बिजली, थी घरघराती बरसात
दिल का दरवाज़ा भी उस रात डर के मारे चरमराया था
इस तरह रोते रोते जग पड़ा था अचानक जब
कांपते हाथों ने प्यार से थपथपाया था

पर वास्तविकता जैसे परदे के पीछे ही थी छिपी
भूत जैसी काली, और निडर
छोटा सा सपना भी छिप गया
मेरी गोद में अपनी आँखें मूंदें ...

किसी तरह, सहला फुसला के
सुलाया था एक सपना
सुनहरी पलकों से इन आँखों ने
झपकाय था एक सपना
अँधेरे में जुगनू सा
जगमगाया था एक सपना
बड़ी मुश्लिल से एक रात
सुलाया था एक सपना

1 comments:

  1. neha

    i loved the thought! Sulaaya tha ek sapna.. ingenious. :) its got a very nice earthy ..old worldly feel to it.

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